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Santhal Vidroh In Hindi (1855-1856)

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Santhal Vidroh :- आज भारतवर्ष स्वतंत्र हो चुका है लेकिन स्वतंत्र होने के लिए इतिहास में कई विद्रोह, युद्ध व आंदोलन किया गया। आज हम बिहार-झारखंड के सबसे बड़े विद्रोह में से एक Santhal Vidroh से संबंधित सभी जानकारी के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। इस पोस्ट के माध्यम से हमने Santhal Vidroh in Hindi, Santhal vidroh ka neta kaun tha, Santhal vidroh kab hua tha, Santhal vidroh kab aarambh hua tha, Santhal vidroh kis varsh hua tha, Santhal vidroh ka Patan इत्यादि सभी पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे।

Santhal Vidroh

Santhal Vidroh के बारे में जाने से पहले यह जानना होगा कि संथाल का अर्थ क्या होता है यानी इस विद्रोह का नाम Santhal Vidroh के नाम से क्यों जाना जाता है तो आइए जानते हैं।

Santhal Kya Hai (संथाल का अर्थ)

भारत में कई प्राचीन जनजातियां निवास करती है उनमें से एक संथाल जनजाति है। यह जनजाति प्राचीन समय में बिहार व पश्चिम बंगाल के पहाड़ियों और जंगली इलाकों में निवास करती थी। इस जनजाति का जीवन भारत में अंग्रेजों के शासन काल के शुरुआती दौर में (जिसे औपनिवेशिक या उपनिवेश काल कहा जाता है, औपनिवेशिक काल 1760 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक प्रभाव में रहा था) बेहद ही समृद्ध व खुशहाल था। क्योंकि संथाल जनजाति का अधिकार बड़े भूभाग पर था। 

यह जनजाति अपने निवास स्थान छोटा नागपुर, कटक पलामू, हजारीबाग, भागलपुर, पूर्णिया के क्षेत्र में जंगलों को काट कर खेती योग्य भूमि निर्माण कर उस पर कृषि किया करते थे। संथाल जनजाति के इस इलाके को “दमनीकोह” के नाम से जाना जाता था। इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि पर निर्भर था। संथाल जनजाति के बारे में जानने के बाद आइए जानते हैं कि आखिर Santhal Vidroh क्या है और Santhal Vidroh क्यों हुआ था।

Santhal Vidroh Kyon Hua Tha (संथाल विद्रोह का कारण)

जब संथाल जनजाति अपने भू -भाग पर कृषि करके खुशहाली जीवन व्यतीत कर रहे थे तो इनके विस्तृत भू भाग पर अंग्रेजों का नजर पड़ा। अंग्रेजी हुकूमत संथाल जनजाति के इन भू-भाग के पर किसी तरह अधिकार जमाना चाहते थे। इसके लिए अंग्रेजों ने जमींदारों का मोहरा बनाते हुए इनके कृषि योग्य भूमि को जमींदारों को देना शुरू कर दिया। जमींदारों ने संथाल लोगों के साथ चालाकी वाला खेल खेलने लगा और उन्हीं की भूमि पर कृषि कराने लगा और बदले में भूमि कर (Tax) वसूलने की घोषणा किया। जमींदारों ने संथाल लोगों पर बेतहाशा लगान की राशि वसूला जाने लगा जिसके बोझ तले वे बिखर गए।

जिसका परिणाम स्वरूप संथाल लोगों का समृद्धि कम होता चला गया और खुद का जीवन यापन करने के लिए कर्ज लेने लगे। कर्ज देने के लिए इस क्षेत्र में साहूकारों का जमावड़ा लगने लगा। संथाल कृषक कर्ज लेकर कृषि करने लगे और अपने परिवार का पालन पोषण किया करते थे। 

जमींदारों को भूमि लगान (Tax) और साहूकारों को कर्ज चुकाने में संथालो की आर्थिक व सामाजिक दशा दयनीय  होता चला गया। भूमि लगान और कर्ज न चुका पाने के कारण संथाली लोगों पर शोषण और अत्याचार होने लगा। उनके खेत, मवेशी भी छीन लिए गए और जमींदारों व साहूकारों का गुलाम बनना पड़ा। जमींदारों व साहूकारों का शोषण और अत्याचार इतना बढ़ गया कि संथालों का धन भी लुटा जाने लगा, संथाली महिलाओं की इज्जत लूटी गई जिसमे सरकारी कर्मचारी, पुलिस, थानेदार भी साथ दे रहा था। इसके अलावा भागलपुर से बर्धमान के बीच रेल परियोजना में संथाली लोगों को जबरदस्ती बेगारी भी करवाया जा रहा था। जिससे आदिवासी संथाली लोग पूरी तरह से टूटने लगे थे।

अंततः अंग्रेजों जमींदारों और साहूकारों के शोषण व अत्याचार से परेशान संथाली लोगों का कहर बनकर टूट पड़ा और सरकार के खिलाफ बड़ा विद्रोह का रूप ले लिया। जिसे Santhal Vidroh के नाम से जाना जाता है।

Santhal Vidroh Ka Neta Kaun Tha

संथालो के ऊपर हो रहे शोषण और अत्याचार के खिलाफ न्याय दिलाने के लिए चार भाई आगे आए। उनके नाम इस प्रकार थे:- सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव। इन चारों भाइयों ने संथाल क्षेत्र के सभी घर, कस्बे और गावों में जाकर लोगो को एकजुट करना शुरू किया। संथाली लोगों का विश्वास प्राप्त करने के लिए सिद्धू ने खुद को भगवान “ठाकुर” द्वारा भेजा गया देवदूत बतलाया।

वे जानते थे कि संथाली लोगों को एकजुट करने के लिए उनके अंदर धर्म का भावना पैदा करना होगा इसलिए सभी को एकजुट करने के लिए कहा कि वह भगवान “ठाकुर” जिन्हें वे रोज पूजा करते हैं उन्होंने न्याय दिलाने के लिए हमे दूत बनाकर भेजे है। इस कार्य में चारो भाई सफल हुए इसी कारण Santhal Vidroh Ka Neta सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव को कहा जाता है।

इन चारों भाइयों ने 30 जून 1855 को भगनाडीही में एक विशाल आम सभा बुलाई जिसमें 10,000 से ज्यादा संथाली लोगों ने हिस्सा लिया। इस आम सभा में सभी लोगों यह बोलकर विश्वाश दिलाया गया कि खुद भगवान “ठाकुर” की इच्छा है कि जमींदारो, साहूकारों और सरकारी कर्मचारी के द्वारा हो रहे अन्याय के खिलाफ संथाल जनजाति डटकर सामना करें और अंग्रेजी हुकूमत को समाप्त किया जाए। इस बैठक में सभी लोगों को शपथ दिलाया गया कि आज से जमींदारों, साहूकारों व अंग्रेजों का संथाली जनजाति मुंहतोड़ जवाब देंगे। 

इस बैठक के बाद जुलाई 1855 ई. में सरदार धीर सिंह मांझी के नेतृत्व में एक दल बनाया गया और विद्रोह का बिगुल फूंक दिया गया। Santhal Vidroh के शुरुआती समय में सबसे पहले जमींदार, साहूकार को निशाना बनाते हुए उनकी धन-संपत्ति को लूटना शुरू किया। जब सरकार भी जमींदारों और साहूकारों का पक्ष लेने लगा तो संथालो का क्रोध सरकार पर भी टूट पड़ा जो आंदोलन शुरुआत में सरकार विरोधी नहीं था इन हरकतों की वजह से सरकार को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया गया। 

इसके बाद अत्याचारी दरोगा महेश लाल को संस्थानों ने मौत के घाट घाट उतार दिया तथा बाजार, दुकान के साथ सरकारी भवन, कार्यालय और थानों में आग लगा दी गई। इतना ही नहीं भागलपुर से राजमहल के बीच रेल सेवा, डाक सेवा और तार सेवा को पूरी तरह से क्षत्रिग्रस्त कर दिया गया। अब Santhal vidroh पूरी तरह से आक्रमक हो चला था, हजारीबाग पूर्णिया भागलपुर मुंगेर बांकुड़ा इत्यादि जगहों में भी Santhal Vidroh का गूंज फैल रहा था जिसके चलते कई सारे बेकसूर भी मारे गए। 

Santhal Vidroh Ka Patan

Santhal Vidroh की आक्रामकता को देखकर अंग्रेजी हुकूमत भी अंदर से हिलने लगा। सरकार इस हिंसक विद्रोह को जल्द से जल्द दबाने का प्रयत्न करने लगा। Santhal Vidroh को कुचलने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने भागलपुर और पूर्णिया से बाकायदा घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र के अनुसार लोगो के हाथ में हथियार दिखते ही फौरन गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया जाने लगा। 

सरकार ने Santhal Vidroh को समाप्त करने के लिए दमनकारी नीति को अपनाना शुरू किया और कोलकाता केजार बरो और पूर्णिया से आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित सेना की टुकड़ी को संथाल क्षेत्र में भेजा गया। अस्त्र शास्त्र से सुसज्जित सेना के सामने संथाली लोग ज्याफा समय तक टिक नहीं पाए क्योंकि इनके पास लड़ने के लिए मात्र तीर और धनुष था। Santhal Vidroh Ka Patan 1856 ई. से होना शुरू हो गया।

हूल विद्रोह (Hul Vidroh) क्या है?

संथाल विद्रोह को ही हूल विद्रोह (Hul Vidroh) कहा जाता है। क्योंकि संथाल विद्रोह में संथाली लोग “हूल-हूल” का नारा लगाते हुए अपने उपर हो रहे शोषण, अत्याचार के खिलाफ आंदोलन किया था। इसी कारण इस विद्रोह को हूल विद्रोह (Hul Vidroh) भी कहा जाता है।

Santhal Vidroh कैसे समाप्त हुआ ?

जब अंग्रेजी सरकार के द्वारा Santhal Vidroh को समाप्त करने के लिए दमनकारी नीति अपनाया तो उसके बाद सेना ने हजारों संथालो को बंदी बनाकर उन पर तरह-तरह के अत्याचार करना शुरू कर दिया तथा घर से उठाकर महिलाओं, बच्चे और बुजुर्गो को कठोर दंड भी दिया जाने लगा।

अंग्रेजों के आदेश पर सेना ने कत्लेआम करना शुरू कर दिया। Santhal vidroh में शामिल 15,000 से अधिक संथाल को मौत के घाट उतार दिया गया। कई Santhal vidroh ka neta को गिरफ्तार करके उन्हें सरेआम मौत के घाट उतार दिया गया। अपने परिजन की हत्या और santhal vidroh ke neta की गिरफ्तारी के कारण अन्य लोगों का मनोबल टूट गया जिससे यह विद्रोह कमजोर पड़ गया। अंततः फरवरी 1856 ई. तक Santhal Vidroh का अंत हो गया। 

संथाल विद्रोह का परिणाम (Result of Santhal vidroh)

  • Santhal Vidroh के कारण अंग्रेज हुकूमत को तो पूरी तरह से उखाड़ फेका नहीं गया लेकिन इस विद्रोह के कारण सरकार को संथाल जनजाति के पक्ष में कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने पर मजबूर होना पड़ा। 
  • Santhal Vidroh के कारण जमींदारों, साहूकारों और सरकारी कर्मचारियों के मन में भय उत्पन्न हुआ जिसके चलते लूट-खसोट, शोषण व अत्याचार की घटना कुछ समय के लिए रुक गया।
  • अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में व्यापक बदलाव और सुधार किया। सरकार और संथालो बीच बातचीत करने के लिए ग्राम प्रधान को मान्यता दिया गया।
  • Santhal Vidroh के समाप्ति के बाद संथाल परगना नाम से एक प्रशासनिक इकाई बनाया गया तथा इस क्षेत्र के लिए संथाल परगना टेनेंसी एक्ट को लागू किया गया।

Santhal Vidroh Kab hua tha

जैसा कि ऊपर में बताया गया है कि Santhal Vidroh Kis Varsh Hua Tha? अगर आप फिर भी इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो आइए जानते हैं कि Santhal Vidroh Kab Aarambh Hua Tha।

Santhal Vidroh जुलाई 1855 में हुआ था। 1855 ई. में जुलाई माह से शुरू होकर फरवरी 1856 ई. तक Santhal Vidroh चला था। यह विद्रोह लगभग 8 महीने तक अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करता रहा।

संथाल विद्रोह (Santhal Vidroh) निष्कर्ष

Santhal Vidroh में कारण भले ही अंग्रेजी सरकार पूरी तरह से उखाड़ नहीं पाया लेकिन हजारों संथाल अपने हक के लिए कुर्बानी दिया जिससे साबित होता है कि शोषण और अत्याचार एक हद तक ही बर्दाश्त किया जा सकता है। Santhal Vidroh के कारण ही ब्रिटिश सरकार संतानों की मांग पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाया। 

संस्थानों की कृषि योग्य भूमि फिर से उन्हें सौंप दिया गया। Santhal Vidroh के परिणाम स्वरूप संथालो के लिए एक परगना बनाया गया जिसे संथाल परगना के नाम से जाना जाता है। इस विद्रोह के बाद भी संथाल जनजाति के ऊपर शोषण और दमन होता रहा है। ब्रिटिश सरकार और भारत के आजाद होने के बाद भी संथाल जनजाति ने Santhal Vidroh से प्रेरणा लेकर अपने हक की लड़ाई के लिए कई विद्रोह किए।

Santhal Vidroh से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Santhal Vidroh Kab hua tha?

Santhal Vidroh की शुरुआत जुलाई 18 सो 55 से लेकर फ़रवरी 18 से 56 ईसवी तक चला था।

Santhal Vidroh Ka Neta Kaun Tha?

Santhal Vidroh का प्रमुख नेता सिद्धू कानून चांद और भैरव थे यह चारों नेता सहोदर भाई थे।

Santhal Vidroh कहां हुआ था?

Santhal Vidroh बिहार और उड़ीसा के बीरभूम से बांकुड़ा मुंगेर हजारीबाग और भागलपुर प्रांत में हुआ था। इस विद्रोह का आग बंगाल में भी पहुंच चुका था।

Santhal Vidroh Ke Karan क्या था?

Santhal Vidroh का प्रमुख कारण अंग्रेज सरकार, जमींदार और साहूकारों द्वारा किया जाने वाला शोषण और अत्याचार था। शोषण और दमन को समाप्त करने के लिए ही Santhal Vidroh उत्पन्न हुआ था।

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